झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मुस्लिम महिला अंगरक्षक का नाम मुंदार खातून था। मुंदार सन् 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान रानी लक्ष्मी बाई की भरोसेमंद और वफादार साथी थीं। मुंदार खातून को रानी की सेवा करने और झाँसी की घेराबंदी के दौरान ब्रिटिश सेना के खिलाफ झाँसी की रक्षा करने में उनकी बहादुरी और समर्पण के लिए जाना जाता है। एक अंगरक्षक के रूप में उनकी भूमिका और रानी के हित के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें भारतीय इतिहास के उस दौर में साहस और एकजुटता का प्रतीक बना दिया है।
अंग्रेजों द्वारा 18 जून 1858 को शहीद कर दी गई मुंदार खातून के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती सिर्फ कुछ अंग्रेजों के चिट्ठियों से उनकी बहादुरी और उनकी शहादत का पता चलता है।
मध्य भारत में गवर्नर जनरल के एजेंट रॉबर्ट हैमिल्टन ने 30 अक्टूबर 1858 को भारत सरकार के सचिव को पत्र लिखकर झांसी की रानी की शहादत की सूचना दी।
उन्होंने लिखा है:
“रानी लक्ष्मीबाई घोड़े पर सवार थीं। उनके साथ एक और मुस्लिम महिला सवार थी, जो कई सालों तक उनकी सेविका और साथी भी रही थी। दोनों एक साथ गोली लगने से घोड़े से नीचे गिर गईं।”
जॉन वेनेबल्स स्टर्ट, जो 1857 के दौरान झांसी के पास तैनात थे, उन्होंने दावा किया कि:
“रानी के साथ आई मुस्लिम महिला मूंदर थी और केवल मूंदर ही मौके पर शहीद हुई थी, जबकि रानी लक्ष्मीबाई को ब्रिटिश गोलियों से नहीं मारा जा सका था।”
( स्रोत: विदेशी राजनीतिक, ए, 31 दिसंबर, 1858, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली)