बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म 24 अक्टूबर 1775 को हुवा और वे भारत के बीसवें और अंतिम मुगल सम्राट थे । जब वह उत्तराधिकारी बने तो मुगल सम्राट नाममात्र का सम्राट था, क्योंकि मुगल साम्राज्य का अधिकार क्षेत्र केवल पुरानी दिल्ली की चारदीवारी (शाहजहांबाद) तक ही सीमित था।
बहादुर शाह ज़फर के नेतृत्व में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम-
बहादुर शाह जफर के धर्मों पर तटस्थ विचारों के कारण भारतीय राजाओं और विद्रोही सैनिकों ने उन्हें स्वीकार किया और उन्हें भारत का सम्राट घोषित किया। बहादुर शाह ज़फर के नेतृत्व में सन् 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई। शुरुआती परिणाम हिंदुस्तानी योद्धाओं के पक्ष में रहे, उन्होंने दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में अंग्रेजों को कड़ी शिकस्त देकर बहुत सारे क्षेत्रों को आजाद करा लिया।
लेकिन बाद में अंग्रेजों के छल-कपट के चलते प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का रुख बदल गया और अंग्रेज बगावत को दबाने में कामयाब हो गए।
अंग्रजों ने दिल्ली की घेराबंदी कर दी जिससे शहर का भरण-पोषण करना कठिन हो गया। जब अंग्रेजों की जीत निश्चित हो गई, तो जफर ने अपने बेटों मिर्जा मुगल और मिर्जा खिज्र सुल्तान और पोते मिर्जा अबू बकर के साथ हुमायूँ के मकबरे में शरण ली, जो उस समय दिल्ली के बाहरी इलाके में था। मेजर विलियम हॉडसन के नेतृत्व में कंपनी बलों ने मकबरे को घेर लिया और जफर को 20 सितंबर 1857 को पकड़ लिया गया।
जब अंग्रेजों ने की जुल्म की सभी को हदें पार-
1857 के भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जफर को भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। उनके पुत्रों और प्रपौत्रों को ब्रिटिश अधिकारियों ने सरेआम गोलियों से भून डाला। यही नहीं, अंग्रेजों ने जुल्म की सभी हदें तब पार कर दी जब बहादुर शाह जफर को भूख लगी तो अंग्रेज उनके सामने थाली में परोसकर उनके बेटों के सिर ले आए। बहादुर शाह ज़फ़र अंग्रेजों को जवाब दिया कि हिंदुस्तान के बेटे देश के लिए सिर कुर्बान कर अपने बाप के पास इसी अंदाज में आया करते हैं।
बहादुर शाह ज़फ़र ने 82 साल की उम्र में अपनी ज़िंदगी, अपनी औलाद, सैकड़ों साल की बेमिसाल सल्तनत सब कुछ लुटा दिया। शाही हाथों में हथकड़ियां पहन ली लेकिन ग़ुलामी की ज़ंजीर नही पहनी।
आजादी के लिए हुई विद्रोह को पूरी तरह खत्म करने के मकसद से अंग्रेजों ने अंतिम मुगल सम्राट को देश से निर्वासित कर रंगून भेज दिया। उन्हें बंदी बनाकर बर्मा (अब म्यांमार) ले जाया गया, जहां उन्होंने 7 नवंबर 1862 में एक बंदी के रूप में दम तोड़ा। जहां बहादुर शाह जफर का मकबरा (मज़ार) म्यांमार के रंगून में स्थित है।
बहादुर शाह ज़फ़र ने अपनी हार के बाद कहा-
जब तक हमारे गाजियों के दिलों में ईमान की ताकत रहेगी , तब-तक हिंदुस्तान की तलवार लंदन की राज-गद्दी के सामने चमकती रहेगी।