हक़ीम अज़मल खान ने यूनानी तिब्बिया कॉलेज़ दिल्ली की संस्थापना किया और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के संस्थापकों में से एक थे। उन्हें 1920 में विश्वविद्यालय का पहला चांसलर भी नियुक्त किया गया था और सन् 1927 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे।
हकीम अजमल खान ने यूनानी चिकित्सा पद्धति के विस्तार और विकास में बहुत रुचि ली और तीन महत्वपूर्ण संस्थानों का निर्माण किया, दिल्ली में सेंट्रल कॉलेज, हिंदुस्तानी दवाखाना, और आयुर्वेदिक और यूनानी तिब्बिया कॉलेज जिसे टिब्बिया कॉलेज, करोल बाग, दिल्ली के नाम से जाना जाता है, जिसने क्षेत्र में अनुसंधान और अभ्यास का विस्तार किया और यूनानी चिकित्सा पद्धति को भारत में विलुप्त होने से बचाया।
हकीम अजमल खान कौन थे?
स्वतंत्रता सेनानी हक़ीम मुहम्मद अजमल खान (Hakeem Mohammad Ajmal Khan) जिन्हे मसीह-उल-मुल्क (हीलर ऑफ द नेशन) भी कहा जाता था। इनका जन्म 11 फरवरी 1868 को दिल्ली में हुवा था और 29 दिसंबर 1927 को इस दुनिया से रुख़सत हुए। पेशे से, खान एक प्रतिष्ठित यूनानी चिकित्सक, औषधिविद, आध्यात्मिक उपचारक, राजनीतिज्ञ और कवि थे।
हकीम अजमल खान एक ख़ानदानी हक़ीम थे। इनका पूरा परिवार चिकित्सा की इस प्राचीन शैली युनानी चिकित्सा में विद्वता रखता था।
हकीम अजमल के इलाज में जादुई असर-
इनके दादा परदादा मुग़ल दरबार मे हक़ीम थे। इनके दादा शरीफ खान (जो मुग़ल शासक शाह आलम के चिकित्सक थे) ने यूनानी चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए शरीफ मंजिल नामक अस्पताल रूपी कॉलेज की स्थापना की थी।
सन् 1892 में हकीम अजमल ख़ान रामपुर के नवाब के प्रमुख चिकित्सक नियुक्त हुए। अपने पिता की तरह अजमल के इलाज में भी जादुई असर था और ऐसा माना जाता था कि अजमल के पास कोई जादुई चिकित्सकीय खजाना था, जिसका राज़ केवल वही जानते थे। कहा जाता था कि अजमल केवल इन्सान का चेहरा देखकर उसकी किसी भी बीमारी का पता लगा लेते थे। हकीम अजमल किसी राइस या नवाब के बुलावे पर जाने के लिए 1000 रू प्रतिदिन के हिसाब से चार्ज करते थे, जबकि दिल्ली स्थित अपने दवाखाने पर इलाज के लिए आने वालों से इलाज का कोई पैसा नही लेते थे चाहे वह कोई राजा ही क्यों न हो।
अंग्रेजों ने एलोपैथी चिकित्सा को बढावा देने के लिए सरकारी संस्थाओं में आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा की मान्यता ख़त्म कर दी थी, जिसके लिए हक़ीम अजमल खान ने अंग्रेजी हुकूमत का खुल कर विरोध किया, जबकि हकीम अजमल खान कोई सरकारी हकीम भी नहीं थे।
अजमल ख़ान कैसे पहुंचे राजनीति में-
अजमल ख़ान के परिवार द्वारा शुरू किये गए उर्दू साप्ताहिक ‘अकमल-उल-अख़बार’ के लिए लेखन कार्य आरम्भ करने के बाद से उनका रुझान चिकित्सा के क्षेत्र से राजनीति के क्षेत्र की ओर हो गया। अजमल ख़ान उस मुस्लिम दल क्रांतिकारियों का नेतृत्व भी कर रहे थे, जो 1906 में शिमला में भारत के वायसरॉय को ज्ञापन सौपने के लिए गया था, जहां बात नही बनी तो उन्होंने गांधी जी से संपर्क कर सहयोग की मांग की इस प्रकार गांधीजी मुस्लिम नेताओं के संपर्क में आए और उसके बाद खिलाफत आंदोलन में भी गांधी सम्मिलित हुए।
उसके बाद अजमल ख़ान लगातार गाँधी जी के साथ आंदोलनो में भाग लेने लगे। हकीम अजमल ख़ान ऐसे एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग और ऑल इंडिया खिलाफत कमेटी इन तीनो का अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
हकीम अजमल ख़ान 29 दिसंबर 1927 को इस दुनिया से रुख़सत हुए। उनके सामाजिक कार्यों और स्वतंत्रता के लिए प्रयासों के कारण लोग उन्हें मसीह-उल-मुल्क (हीलर ऑफ द नेशन) की उपाधि से संबोधित करते।