कुर्बानी क्या है?
कुर्बानी अल्लाह के लिए एक जानवर की बलि देने की प्रथा है। हर साल, ईद-उल-अजहा के दिनों में जुल हिज्जा महीने की 10वीं से 13वीं तारीख तक दुनिया भर के मुसलमान हज के पूरा होने के उपलक्ष्य में एक जानवर की कुर्बानी देते हैं। यह प्रथा हजारों साल पहले इब्राहिम (अ) के बलिदान की याद दिलाती है, जो अल्लाह के लिए अपने प्यारे बेटे को बलिदान करने के लिए तैयार थे (नीचे उनकी कहानी विस्तार से पढ़ें)।
कुर्बानी केवल एक जानवर का वध और उसके मांस का वितरण नहीं है, बल्कि यह एक यादगार रस्म से अधिक है। ‘कुर्बानी’ शब्द अरबी, ‘कुर्बान’ से लिया गया है, जिसकी जड़ अरबी शब्द ‘कुर्ब’ में है – जिसका अर्थ है ‘निकटता’। कुर्बानी चढ़ाने का मकसद अल्लाह के करीब आना है। कुर्बानी के माध्यम से, हम उस बात की पुष्टि करते हैं जिसे हम कभी-कभी रोजमर्रा की जिंदगी की हलचल में भूल जाते हैं – कि हम पूरी तरह से अल्लाह के अधीन हैं, और हम पैगंबर इब्राहिम की तरह, उसके करीब रहने और उसकी खुशी हासिल करने के लिए हमसे जो कुछ भी मांगा जाता है, उसे बलिदान करने के लिए तैयार हैं, हजरत इब्राहिम (अ) की तरह जैसा की उन्होंने हजारों साल पहले किया था।
इस प्रकार, कुर्बानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हमारे ईमानदार इरादों को याद रखना और इस प्रतीकात्मक बलिदान के माध्यम से अल्लाह के करीब होने का प्रयास करना है।
कब हुई दुनिया की पहली कुर्बानी?
अल्लाह ने हमें कुरान में पैगंबर हजरत आदम (अ) के दो बेटों हाबील और काबील की कहानी बताते हैं। उनके बीच एक समस्या को हल करने के लिए, हजरत आदम (अ) ने उन दोनों को कुर्बानी करने के लिए कहा, जिसका बलिदान स्वीकार हो जायेगा वह स्पष्ट विजेता होगा।
चूँकि हाबील एक चरवाहा था, उसने बलि के लिए एक मेढ़े की पेशकश की। काबील खेती करता था, इसलिए उसने ज़मीन से उगाई गई कुछ उपज की पेशकश की। हाबील ने सबसे अच्छे जानवर का चयन करने का ध्यान रखा, जो कि स्वस्थ और अच्छी तरह से खिलाया गया था, जबकि काबील अपनी उपज का सबसे अच्छा हिस्सा देने को तैयार नहीं था। अल्लाह ने हाबील के बलिदान को स्वीकार कर लिया उसे जला दिया (उस समय कुर्बानी के कबूल होने की निशानी यह होती थी कि आसमान से एक आग आता था और उस कुर्बानी को जला देता था), और उसने काबील के बलिदान को अस्वीकार कर दिया।
हाबील ने अपने भाई को समझाया कि अल्लाह उन्हीं से स्वीकार करता है जिनके पास तक्वा है । काबील ने स्पष्ट रूप से अपना बलिदान ईमानदारी से नहीं किया था, और अल्लाह को इस बात की जानकारी थी। हालाँकि, काबील को इस बात से जलन थी जिस तरह से हाबील ने उस पर कृपा की थी और इसलिए काबील ने अपने भाई को मार डाला था।
हाबील और काबील की कहानी बताती है कि ईमानदारी और इरादे की पवित्रता कुर्बानी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है । इसका एक हिस्सा एक योग्य बलिदान का चयन करना है जैसा कि हाबिल ने किया था, और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कुर्बानी इस्लामी तरीके से किया जाए। हमे यह समझना चाहिए कि ज़कात की तरह, कुर्बानी एक वार्षिक कार्य या कर नहीं है जिसे हमें टू-डू सूची पर टिक करना है बल्कि यह एक गहरी आध्यात्मिक गतिविधि है और अल्लाह के करीब आने का मौका है।
हजरत इब्राहिम (अ.) की कुर्बानी
जब हजरत इब्राहिम (अ) के पुत्र इस्माइल (अ) अपने पिता के साथ घूमने और उसके साथ काम करने के लिए पर्याप्त बड़े हो गये, तो इब्राहिम (अ) को सपने में यह पता चला कि उन्हें अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाहिए। इब्राहीम (अ) ने इस आदेश पर सवाल नहीं उठाया, इब्राहिम (अ.)अपनी औलाद इस्माईल को लेकर चल दिए। जब यह बात इस्माइल (अ.) को पता चली तो,
उन्होंने (हजरत इस्माइल) कहा, “ऐ मेरे पिता! जैसा आपको आदेश दिया गया है वैसा ही करें। अगर अल्लाह चाहते हैं, तो आप मुझे सब्र करने वालों में से पाओगे”। (कुरान, 37:102)
पिता और पुत्र दोनों, इस्माइल की जान कुर्बान करने के लिए तैयार थे, लेकिन शैतान उन्हें मना करना चाहता था। इसलिए उन दोनो ने उसे( शैतान को) पत्थर मारा। फिर शैतान हजरत इस्माइल की मां हजरा को बहकाने उनके पास गया, उन्हें जब पता चला कि यह अल्लाह का आदेश है तो उन्होंने कहा कि यदि यह अल्लाह की ओर से है तो उन्हें इसे स्वीकार करना चाहिए, और उन्होंने भी शैतान को पत्थर मारा। इस तरह उनमें से प्रत्येक ने शैतान को पत्थर मारा। इसलिए हज पर तीन बार प्रतीकात्मक रूप से शैतान को पत्थर मार कर उस घटना को याद किया जाता है ।
हमें यह असंभव लगता है कि कोई अपने प्यारे बच्चे को बलिदान करने के लिए तैयार हो सकता है, हालाँकि, इब्राहिम (अ) का परिवार अल्लाह की अवज्ञा की अस्वीकृति में इतना बलशाली था कि उन्होंने शैतान पर पत्थर फेंके।
हजरत इब्राहिम (अ.)अपनी औलाद इस्माईल (अलैहि सलाम) को लेकर अल्लाह के हुक्म पर कुर्बान करने पहुंच गए, इब्राहीम (अलैहि सलाम) ने इस्माईल को उल्टा लिटा दिया और अपनी आँख पर पट्टी बांध ली, जब हजरत इब्राहीम (अ.) बेटे की गर्दन पर छुरी चलाने लगे तो अल्लाह के हुक्म से एक दुम्बा बीच में आ गया जो हजरत इब्राहीम (अ.) से जिबह हो गया। हजरत इब्राहीम (अ.) की इस कुर्बानी को अल्लाह द्वारा इतना कुबूल किया गया कि कयामत तक आने वालो मुसलमानो पर हलाल जानवर की कुर्बानी का हुक्म दिया गया।
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त कभी भी किसी का नुकसान नही चाहते मगर आजमाते जरुर हैं, इसी कुर्बानी के अमल को हम आज भी करते हैं, कुर्बानी के माध्यम से, हम इस बात की पुष्टि करते हैं कि हम पूरी तरह से अल्लाह के अधीन हैं, और हम पैगंबर इब्राहिम की तरह, उसके करीब रहने और उसकी खुशी हासिल करने के लिए हमसे जो कुछ भी मांगा जाता है, उसे बलिदान करने के लिए तैयार हैं।
अल्लाह आपकी और हमारी कुर्बानी स्वीकार करे।
आपको और आपके प्रियजनो को ईद-उल-अज़हा की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं। यह ईद हमारे घर, इस देश और पूरी दुनिया में शांति लाए। आइए आने वाले दिनों में अपने जीवन में अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी की भावना को बनाए रखने का प्रयास करें।
अमीन! अल्लाहुम्मा अमीन।
🙏🙏👍👍