इस्लामी कैलेंडर की शुरूवात कब और कैसे हुई ?
सन् 17 या 18 हिजरी में अमीर अल मूमिनीन उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहू अन्हु के सामने एक दस्तावेज़ पेश हुआ जो एक आदमी के दूसरे पर किसी हक़ या क़र्ज़ का सबूत था और उसमे ये लिखा था के ये शाबान में वाजिब उल अदा होगा। तो उमर ने पुछा कौन-सा शाबान इस साल का शाबान या पिछला या आने वाले साल का शाबान।
फ़िर उन्होंने सहाबा ए किराम को जमा किया और एक इस्लामी तारीख़ को तरतीब देने के बारे में मशवरा किया जिसके ज़रिए लोगो को कर्जों और दूसरे हुक़ूक़ की अदाएगी की सही तारीख़ मालूम हो सके। किसी ने कहा फ़ारस वालो की तारीख़ इस्तेमाल की जाए, किसी ने कहा रोम वालो की तारीख़, किसी ने कहा रसूल अल्लाह की पैदाईश के दिन से हमारी तारीख़ की शुरुवात हो, कुछ लोगो ने कहा आपको नबुव्वत मिलने की तारीख़ से, कुछ ने कहा आप की हिजरत के दिन से और कुछ लोगो ने कहा आपकी वफ़ात के दिन से।
सैय्यदना उमर ख़ुद हिजरत के दिन से तारीख़ की शुरुवात की तरफ़ माएल हुए फ़िर सब ने इस्लामी सोसायटी की बुनियाद ओ ता’मीर में हिजरत नबवी की अज़ीम अहमियत के पेशे नज़र उसी राय पर इत्तिफ़ाक़ कर लिया और इस लिए भी सब ने इस राय को तरजीह दी के हिजरते नबवी हक़ ओ बातिल, रोशनी ओ अंधेरा ख़ैर ओ शर और मुशरिकीन ए मक्का के ज़ुल्म ओ ज़ियादती और घमंड ओ ग़ुरुर और मज़लूम मुसलमानों के नए दौर की शुरुवात के दरमियान हद्द ए फ़ासिल थी जब सब हिजरत को शुरुवाती तारीख़ मानने पर राज़ी हो गए तो कहने लगे किस महीने से इस्लामी साल की शुरुवात हो फ़िर “मुहर्रम” के महिने पर सबका इत्तिफ़ाक़ हो गया इस लिए के इसी महीने लोग हज से वापस आते हैं इसी लिए मुहर्रम से इस्लामी साल की शुरुवात होती है”
(अस सादिक़ुल अमीन पेज नं 282)
मुहर्रम का महीना इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना कैसे बना ?
हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु के ख़िलाफ़त के ज़माने में (लगभग 17 हिजरी) मुस्लिम सल्तनत बहुत बढ़ गई थी जिस की वजह से हिसाब किताब रखा जाने लगा जेसे ये इलाक़े से क्या आता है वो इलाक़े से क्या आता है. ज़कात, टैक्स वग़ैराह इन सब चीज़ों का हिसाब किताब रखा जाने लगा इस्लामी कैलेंडर न होने की वजह से हिसाब किताब रखने में बहुत परेशानी हो रही थी तो हुआ ये की हिसाब किताब के लिए लोगों ने कहा –
ऐ! अमीरुल मोमिनीन ये जो हम टैक्स, ज़कात वगैरह लेते हैं इसके लिए कोई शुरूवाती महीना (Starting Month) हो और आख़री महीना (Ending Month) हो ताकि इस्लामी साल का एक शुरूवात और एक ख़ात्मा हो जिसकी वजह से हिसाब किताब रखने में आसानी हो तो हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु ने ग़ौर वे फ़िक्र करने के बाद सहाबा से मशवरा किया और ये तय किया कि मुहर्रम को इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना और ज़ुल हिज्जा को आख़री महीना मानेंगे। ताकि हिसाब किताब (Accounting) के लिए आसानी हो।
कैसे मुहर्रम को इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना चुना गया ?
अल्लामा इब्न हजर रहमतुल्लाह अलैहि ने फ़रमाया इस्लामी कैलेंडर की शुरूवात मुहर्रम से हुई रबी-उल- अव्वल से नही हुई जिस मे नबी की हिजरत हुई थी इस वजह से सहाबा ए किराम इस नतीजे पर पहुंचे के वो वाक़ियात जिनसे कैलेंडर की शुरूवात की जा सकती है वो 4 हो सकते हैं नबी की पैदाईश, नबुव्वत, हिजरत और वफ़ात फ़िर उन्होंने देखा के पैदाईश और नबुव्वत मिलने की तारीख़ों में इख़्तिलाफ़ पाया जाता हैं तारीख़ वफ़ात को इसलिए सही न समझा के ये तारीख़ मुसलमानों के ग़म ओ रंज को ताज़ा करती रहेगी लिहाज़ा सब हिजरत पर मुत्तफ़िक़ हो गए उन्होंने रबी उल अव्वल की बजाए मुहर्रम से इसलामी कैलेंडर की शुरूवात कि क्यूंकि हिजरत का इरादा मुहर्रम में हुआ था बै’अत अक़बा सानिया ज़ुल् हिज्जा के महीने में हुई थी जो हिजरत का पेश-ख़ेमा साबित हुई सबसे पहला चाँद जो उस बै’अत के बाद तुलू हुआ वो मुहर्रम का था चुनांचे मुनासिब यहीं ख़्याल किया गया के मुहर्रम से इसलामी कैलेंडर की शुरूवात कि जाए इब्न हजर रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते है यही वो सब से ज़्यादा सही बात रही जिसकी वजह से इसलामी कैलेंडर की शुरूवात मुहर्रम के महीने से हुई (सीरत उमर ए फ़ारूक़ जिल्द नं 1 पेज नं 280 और 281 अल-सलाबी)
हज़रत उमर रज़ियल्लाहू के दौर में इस्लामी कैलेंडर की शुरूवात हुई उस्मान बिन अब्दुल्लाह फ़रमाते है मैंने सईद बिन मुसैब रहमतुल्लाह अलैहि से सुना उन्हों ने फ़रमाया सैय्यदना उमर रज़ियल्लाहू अन्हु ने अंसार और मुहाजिरीन को जमा किया और पूछा हम अपने (मुसलमानों) के कैलेंडर की शुरूवात कब से करे ? सय्यदना अली रज़ियल्लाहू अन्हु ने मशवरा दिया के जिस वक़्त नबी शिर्क की ज़मीन से निकल कर मदीना तशरीफ़ लाए उसी वक़्त से हमारी तारीख़ का आग़ाज़ होना चाहिए सय्यदना उमर रज़ियल्लाहू अन्हु ने ये मशवरा फ़ौरन क़ुबूल फ़रमा लिया।
(सीरत उमर ए फ़ारूक़ जिल्द नं 1 पेज नं 280 अल-सलाबी)
मुहर्रम को इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना रखने के पीछे हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु की हिकमत ये थी अल्लाह के रसूल ﷺ नें मदीने के लिए ज़ुल हिज्जा के आख़री अय्याम मे हिजरत शुरू की और जब आप ﷺ मदीना पहुंचे उस दिन मुहर्रम की 1 तरीख़ थी तो हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु ने सोचा क्यूँ ने हिजरत से यानि मुहर्रम की 1 तरीख़ से इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत की जाए और इस तरह हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु के दोर में इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत हुई।
(अस सादिक़ुल अमीन पेज नं 282)
नोट:- जब से दुनिया बनी है तब से इस्लामी महीनों की गिनती 12 है रसूल अल्लाह ﷺ के ज़माने में भी इसी तरह था लेकिन शुरुवाती और आख़री महीना मुक़र्रर नहीं था बाद में ज़रूरत के मुताबिक़ हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हु के दोर में इस्लामी कैलेंडर की शुरुवात हुई।