हज़रत मुहम्मद (स०) ने फ़तेह मक्का के अवसर पर हज के समय अपना आखरी खुत्बा (भाषण) दिया । ये ख़ुत्बा इस्लाम के मानने वालों के साथ-साथ पूरी मानवता के लिए प्रेरणादायक है। इस अंतिम ख़ुत्बा में मानवजाति के ऊंचे सिद्धांत दिखाई देते हैं। ख़ुत्बे का एक-एक शब्द मानवता और समानता के उपदेश से परिपूर्ण है।
हज़रत मुहम्मद (स०) ने फ़रमाया:-
अल्लाह की किताब और उसके रसूल की सुन्नत को मजबूती से पकड़े रहना।
प्यारे भाइयो! मैं जो कुछ कहूँ, बहुत ध्यान से सुनो। ऐ इंसानो! तुम्हारा रब एक है।
अल्लाह की किताब और उसके रसूल की सुन्नत को मजबूती से पकड़े रहना।
लोगों की जान-माल और इज़्ज़त का ख़याल रखना, ना तुम लोगो पर ज़ुल्म करो, ना क़यामत में तुम्हारे साथ ज़ुल्म किया जायगा।
कोई अमानत रखे तो उसमें ख़यानत न करना। ब्याज के क़रीब न भटकना।
किसी अरबी को किसी अजमी (ग़ैर अरबी) पर कोई बड़ाई नहीं, न किसी अजमी को किसी अरबी पर, न गोरे को काले पर, न काले को गोरे पर, प्रमुखता अगर किसी को है तो सिर्फ तक़वा(धर्मपरायणता) व परहेज़गारी से है अर्थात् रंग, जाति, नस्ल, देश, क्षेत्र किसी की श्रेष्ठता का आधार नहीं है। बड़ाई का आधार अगर कोई है तो ईमान और चरित्र है।
तुम्हारे ग़ुलाम, जो कुछ तुम खुद खाओ, वही उनको खिलाओ और जो तुम खुद पहनो, वही उनको भी पहनाओ।
अज्ञानता के तमाम विधान और नियम मेरे पाँव के नीचे हैं।
इस्लाम आने से पहले के तमाम ख़ून खत्म कर दिए गए। (अब किसी को किसी से पुराने ख़ून का बदला लेने का हक़ नहीं) और सबसे पहले मैं अपने ख़ानदान का ख़ून–रबीआ इब्न हारिस का ख़ून– ख़त्म करता हूँ (यानि उनके कातिलों को क्षमा करता हूँ)|
अज्ञानकाल के सभी ब्याज ख़त्म किए जाते हैं और सबसे पहले मैं अपने ख़ानदान में से अब्बास इब्न मुत्तलिब का ब्याज ख़त्म करता हूँ।
औरतों के मामले में अल्लाह से डरो। तुम्हारा औरतों पर और औरतों का तुम पर अधिकार है।
औरतों के मामले में मैं तुम्हें वसीयत करता हूँ कि उनके साथ भलाई का रवैया अपनाओ।
लोगो! याद रखो, मेरे बाद कोई नबी नहीं और तुम्हारे बाद कोई उम्मत (समुदाय) नहीं।
अत: अपने रब की इबादत करना, प्रतिदिन पाँचों वक़्त की नमाज़ पढ़ना। रमज़ान के रोज़े रखना, खुशी-खुशी अपने माल की ज़कात देना, अपने पालनहार के घर का हज करना और अपने हाकिमों का आज्ञा पालन करना। ऐसा करोगे तो अपने रब की जन्नत में दाख़िल होगे।
ऐ लोगो! क्या मैंने अल्लाह का पैग़ाम तुम तक पहुँचा दिया! (लोगों की भारी भीड़ एक साथ बोल उठी) हाँ, ऐ अल्लाह के रसूल! (तब हजरत मुहम्मद स. ने तीन बार कहा) ऐ अल्लाह, तू गवाह रहना।
(उसके बाद क़ुरआन की यह आखिरी आयत उतरी)
“आज मैंने तुम्हारे लिए दीन (सत्य धर्म) को पूरा कर दिया और तुम पर अपनी नेमत (कृपा) पूरी कर दी। (Quran 5:3)”
(संदर्भ: अल-बुखारी हदीस नंबर 1623, 1626, 6361)
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