मौलाना अबुल कलाम आज़ाद एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान, कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। इनका जन्म 11 नवंबर 1888 में सऊदी के मक्का में हुवा था। मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने अपनी इस्लामी शिक्षा घर और मस्ज़िद में अपने पिता तथा बाद में अन्य विद्वानों से प्राप्त किया। इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें दर्शनशास्त्र, इतिहास तथा गणित की शिक्षा भी प्राप्त किया। आज़ाद ने उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, अरबी तथा अंग्रेजी़ भाषाओं में महारथ खुद से पढ़ कर हासिल की। सोलह साल की उम्र मे उन्होंने वो सभी शिक्षा पूरी करली थीं जो आमतौर पर 25 साल में पूरी होती है। उसके बाद उन्होंने इजिप्ट के अल अजहर विश्वविद्यालय से भी शिक्षा प्राप्त की।
अबुल कलाम स्वंत्रता सेनानी और पत्रकार के रूप में-
अबुल कलाम आजाद अंग्रेजी हुकूमत के सख्त खिलाफ़ थे। उन्होंने अंग्रेजी सरकार को आम आदमी के शोषण के लिए जिम्मेवार ठहराया, इसलिए सिर्फ 16 साल की उम्र में भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया और उन्हें श्री अरबिन्दो और श्यामसुंदर चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों से समर्थन मिला। उन्होने 1912 में एक उर्दू पत्रिका अल हिलाल की शुरुआत किया, जिसका मकसद मुसलमान युवकों में स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी भड़काना और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देना था।
अबुल कलाम आजाद ने कांग्रेसी नेताओं का विश्वास बंगाल, बिहार तथा बंबई में क्रांतिकारी गतिविधियों के गुप्त आयोजनों द्वारा जीता। उन्हें 1920 में क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण जेल जाना पड़ा। 1923 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने। वे 1940 से 1945 के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। अबुल कलाम आजाद महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में, अबुल कलाम आजाद ने महात्मा गांधी की अगुवाई में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। यह प्रभावशाली राष्ट्रवादी आंदोलन ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का प्रमुख कारक बन गया।
भारत की आजादी के बाद –
अबुल कलाम आजाद स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने अपने जीवन के अंत तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन किया। मौलाना आज़ाद ने ही ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान’ अर्थात ‘आई.आई.टी.’ और ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ (UGC) की स्थापना किया। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए ‘संगीत नाटक अकादमी’, ‘साहित्य अकादमी’ और ‘ललितकला अकादमी’ की स्थापना किया।
केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केंद्र और राज्यों दोनों से सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, चौदह वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की वकालत की।
22 फरवरी 1958 को हृदय आघात से उनका निधन हो गया था। सन् 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया, साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्यों के सम्मान में उनके जन्म दिवस, 11 नवम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस घोषित किया गया।