आजकल जीपीएस की वजह से दुनिया में किसी भी पते पर आसानी से पहुंचा जा सकता है और इस तरह के डिवाइस की जरूरत हमेशा से थी, समुंद्री कश्तियों को चलाने वालों को समुद्र में रास्ता जानने के लिए किसी नेवीगेशन सिस्टम की जरूरत हमेशा से महसूस होती थी।
और इसी ज़रूरत को देखते हुए यूनान के ऐपोलोनियस ने लगभग सन 200 ईसा पूर्व में एक नेवीगेशन सिस्टम तैयार किया जिस का नाम एस्ट्रोलेब रखा, इस डिवाइस को हिंदी में तारेक्ष और अरबी भाषा में अल-अस्तिरलाब (al’iistirlab) कहते हैं।
यह बहुत शुरूआती सिस्टम था जिसमें बहुत सारी खामियां थीं, इस्लामी स्वर्ण युग के दौरान मुस्लिम वैज्ञानिकों ने इन खामियों को दूर किया, इन्हीं वैज्ञानिकों में से एक हैं 10वीं सदी की मरियम अल-इजलिया (Al-ʻIjliyyah) नाम की एक मुस्लिम महिला, जिसे मरियम अल अस्त्रुलाबी (Mariam al-Asturlabiyy) के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने एस्ट्रोलैब्स बनाने और उसके उपयोग को अगले स्तर पर ले गईं।
मरियम (Mariam al Asturlabi) ने कैसे बनाया एस्ट्रोलेब –
सीरिया के शहर ओलप्पो में जन्मी मरियम अल अस्त्रुलाबी की एस्ट्रोलैब विकसित करने की प्रवृत्ति अपने पिता से प्रेरित थी, जो खुद बगदाद में एक एस्ट्रोलैब निर्माता थे। वह अपनी जिज्ञासु बेटी के साथ एस्ट्रोलैब्स पर अपने गहन ज्ञान और सीख को साझा करते थे
एस्ट्रोलैब के डिजाइन और विकास के लिए भी मरियम को जटिल गणितीय गणनाओं और सटीकता के साथ काम करने की आवश्यकता थी, लेकिन उन्होंने धीरे-धीरे डिजाइनों में महारत हासिल कर ली।
मरियम अल अस्त्रुलाबी के बनाए एस्ट्रोलैब बहुत जटिल और नवीन था, जिसे अब पहले की तुलना में आसानी से उपयोग और स्टीक जानकारी प्राप्त किया जा सकता था। मरियम की प्रसिद्धि बढ़ने लगी, जिसने अलेप्पो के शासक सैफ अल डावला को प्रभावित किया, उसने मरियम को अलेप्पो के शाही दरबार में नियुक्त करने का फैसला किया।
मरियम अल अस्त्रुलाबी ने इस दौरान नेविगेशन और टाइमकीपिंग तकनीक विकसित करने में भी मदद की।
मरियम अल अस्त्रुलाबी द्वारा आविष्कृत एस्ट्रोलैब खगोल विज्ञान की मदद कैसे करते हैं?
एस्ट्रोलैब एक ऐसा उपकरण है जो सूर्य और तारों जैसे सूक्ष्म पिंडों का उपयोग कर के स्थानीय समय बताने और अक्षांश में आपकी स्थिति बताने के लिए करता है।
मरियम के बनाए एस्ट्रोलैब पर रीसर्च ने ऐसे साक्ष्य दिखाए जो बताते हैं कि इस एस्ट्रोलाब का उपयोग सितारों और अन्य आकाशीय पिंडों की गणितीय स्थिति को सटीक रूप से स्थापित करने के लिए किया जा सकता है, भले ही वह कक्षा में न हो। इससे यह जानना आसान हो गया की कौन सा ग्रह या तारा कब कहां होगा, इससे चांद की स्थिति की भविष्यवाणी करना आसान हो गया।
मरियम अल अस्त्रुलाबी ने इंजीनियरिंग के साथ-साथ उच्च स्तरीय गणित ज्ञान को अपने उत्कृष्ट शिल्प कौशल में प्रयोग करके एक ऐसा एस्ट्रोलैब बनाया जो आधुनिक खगोल विज्ञान और इस्लामी धर्म के जरूरतों को पूरा करता था।
सम्मान-
खगोल विज्ञान में मरियम के महत्वपूर्ण योगदान को आधिकारिक तौर पर मान्यता मिल गई, जब सन् 1990 में पालोमर वेधशाला में हेनरी ई. होल्ट द्वारा खोजे गए एक क्षुद्रग्रह (7060) का नाम, मरियम अल-इजलिया के नाम पर अल-इजलिया रखा गया।
विज्ञान के इस जादूगरनी और एस्ट्रोलैब्स के प्रति उनके आकर्षण से प्रेरित होकर, नाइजीरियाई-अमेरिकी लेखक नेदी ओकोराफर ने एक उपन्यास ‘बिंटी’ लिखा और कहानी के केंद्रीय चरित्र को मरियम के इर्द-गिर्द बुना। उनके उपन्यास को नेबुला पुरस्कार मिला।
अतीत की एक मुस्लिम महिला के बारे में जानना बहुत अच्छा है जो खगोल विज्ञान के प्रति जुनूनी थी। वह दुनिया भर में उन लाखों लड़कियों के लिए एक रोल-मॉडल हैं जो अपने शोध और आविष्कारों के साथ एक पहचान बनाना चाहती हैं ।
अपनी उपलब्धियों के बावजूद, मरियम आधुनिक समय में लोगों द्वारा अंजान हैं। फिर भी, उनके योगदान को भुलाया नही जा सकता, क्योंकि उनका आविष्कार उस समय के वैज्ञानिक युग को आगे ले जाने वाला एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने आगे की प्रगति की नींव रखी।