लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले मुख्यतः पंजाबियों द्वारा मनाया जाता है। पर क्या आपको मालूम है लोहड़ी का यह त्यौहार किसकी याद में मनाया जाता है? इस अवसर पर जिस ‘पंजाब के पुत्र’ की तारीफ़ करते हुए गाना गाया जाता है, और जिसका नाम इस त्योहार के साथ जुड़ा हुआ है वो कौन है? उस शख़्स का नाम है दुल्ला भट्टी जिसे अब्दुल्लाह खान भट्टी तथा ‘पंजाब पुत्र’ भी कहा जाता है।
अब्दुल्ला खान भट्टी , जिन्हें दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता है, पंजाब के एक प्रसिद्ध मुस्लिम राजपूत नायक थे , जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था। पंजाबी भाषा का एक किस्सा ‘दुल्ला दी वार’ है, इसमें पाकिस्तानी पंजाब में दुल्ला भट्टी की लड़ाई की घटनाओं का लेखा-जोखा है। पंजाब के लोकगीतों में दुल्ला भट्टी को “पंजाब के बेटे” या “पंजाब के रॉबिन हुड” के रूप में वर्णित किया जाता है। अब्दुल्ला भट्टी के कारनामे लोककथाओं में दर्ज है। दुल्ला भट्टी उस जमाने के रॉबिनहुड थे, जो अमीरों से, अकबर के जमींदारों से, सिपाहियों से सामान लूटते और गरीबों में बांट देते थे।
अब्दुल्ला खान भट्टी ने अपने सामान्य सत्ता विरोधी स्वभाव को अकबर के शासन के विद्रोह का लक्ष्य बना दिया, हालांकि अपने रिश्तेदारों की मौत का बदला लेना लक्ष्य नहीं था, बल्कि शासन और अभिजात वर्ग द्वारा किए जा रहे ज्यादती और क्रूरता के खिलाफ थे।
दुल्ला भट्टी और लोहड़ी-
लोहड़ी का इतिहास दुल्ला भट्टी की कहानी से जुड़ा हुआ है । दुल्ला भट्टी अकबर के शासनकाल में एक विद्रोही डाकू थे जो अमीरों का धन लूटकर गरीबों में बांट देता था। उस क्षेत्र के गरीब लोग उसकी उदारता और दयालुता के कायल थे और इसीलिए वे उसका आदर और प्रेम करते थे।
लोहड़ी के लोकगीतों के अनुसार दुल्ला भट्टी पंजाबी लड़कियों को मध्य पूर्व के दास बाजार में बेचने के लिए जबरन ले जाने से बचाने के लिए उन्हें पंजाब में एक नायक के रूप में याद किया जाता है । एक बार की बात है, उन्होंने दो लड़कियों सुंदरी और मुंदरी को बचाया, जो धीरे-धीरे चर्चा का विषय बन गईं। सुंदरी-मुंदरी की पहले से सगाई हो चुकी थी, इसलिए दुल्ला भट्टी ने जंगल में ही दूल्हे से लड़कियों की शादी करने आने को कहा, लड़कियों के ससुर ने शासक के डर से कहा कि वे रात में शादी करने आएंगे। शादी गांव के बाहर जंगल में तय की गई थी। रोशनी के लिए लकड़ी इकट्ठी कर आग जलाई गई। दुल्ला भट्टी ने आसपास के गांवों से चंदा इकट्ठा किया। लोगों ने सुंदर-मुंदरी के विवाह पर गुड़, चीनी और अनाज आदि के रूप में कुछ दान दिया। कहा जाता है कि तभी से लोहड़ी मनाने का रिवाज शुरू हुआ। इसीलिए लोहड़ी के दिन लोहड़ी के समय लोकगीतों के माध्यम से दुल्ला भट्टी को याद किया जाता है। बच्चे जब दूसरे लोगों के घर लोहड़ी मांगने जाते हैं तो ये गाना गाते नजर आते हैं।
दुल्ला भट्टी की मौत-
अंत में दुल्ला भट्टी को गिरफ्तार कर लिया गया और 26 मार्च 1599 को लाहौर में फाँसी दे दी गई। अकबर का मानना था कि उसकी सार्वजनिक फाँसी जनता के लिए एक मिसाल कायम करने के लिए थी कि अन्य प्रतिरोधियों को हतोत्साहित करेगा, लेकिन दुल्ला भट्टी का प्रभाव बहुत दृढ़ साबित हुआ। सूफी कवि शाह हुसैन ने अपने अंतिम शब्दों का वर्णन इस प्रकार किया है।
“पंजाब का कोई भी स्वाभिमानी बेटा पंजाब की जमीन कभी नहीं बेचेगा” – कवि शाह हुसैन