‘इस्लाम का स्वर्ण युग’ (Islamic Golden Age) इस्लाम के इतिहास में सांस्कृतिक, आर्थिक और वैज्ञानिक उत्कर्ष का काल था, जो 8वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक था। इस्लामिक स्वर्ण युग की शुरुआत पारंपरिक रूप से अब्बासिया ख़लीफ़ा ‘हारुन अल-रशीद’ (786 से 809) के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था, जहां उस वक्त के दुनिया के सबसे बड़े शहर बग़दाद में ‘बैत अल हिकमा’ यानी ‘ज्ञान का घर’ का उद्घाटन हुआ था, यहां इस्लामिक विद्वान और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले अलग अलग विषयों के विद्वानो को दुनिया के सभी ज्ञान को एकत्रित करने, उसका अनुवाद अरबी और फारसी में करने और उसका अध्ययन करने के लिए इकट्ठा किया गया था। इन विद्वानों ने प्राचीन युनान, भारत, चीन और फ़ारसी सभय्ताओं की साहित्य, दर्शनशास्र, विज्ञान, गणित इत्यादी से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन किया और उनका अरबी और फारसी में अनुवाद किया। इस कारण से मुस्लिम दुनिया बहुत जल्द विश्व का बौद्धिक केन्द्र बन गया।
इस्लामी स्वर्ण युग कब से कब तक था?
इस्लामिक स्वर्ण युग के अंत कि शुरुआत मंगोल आक्रमण और सन् 1258 में बगदाद की घेराबंदी के कारण अब्बासिया ख़लीफ़ा के पतन के साथ शुरू हुई और गनपाउडर की खोज के बाद 15 वीं से 16 वीं शताब्दी के बीच इस्लामिक स्वर्ण युग का अंत माना जाता है।
इस्लामी स्वर्ण युग का दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ा? –
इस युग के प्रभाव को संक्षिप्त में लिखना बहुत मुश्किल है क्योकि इसका धर्म, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान, गणित, दर्शनशास्र आदि ज्ञान के सभी क्षेत्रों पर विस्तृत प्रभाव पड़ा।
इस्लामी स्वर्ण युग का धर्म पर प्रभाव –
इस काल में मुहम्मद साहब के उद्धरण (हदीस), गतिविधियां इत्यादि का मतलब खोजना और उनसे कानून बनाना स्वयँ एक विषय बन गया। चार प्रमुख इमामो में से इमाम अबू हनीफा के बाद के तीनों इमाम इसी काल में हुए, बाकी के इमाम इमाम बुखारी (सहीह अल-बुख़ारी के लेखक या संग्रहकर्ता), इमाम अबू दावूद, इमाम मुस्लिम आदि भी इसी काल में हुए, इन इमामों के द्वारा प्रामाणिक (सहिह) हदीशों का संग्रह किया गया।
इस्लामी स्वर्ण युग का दुनिया के संस्कृतियों पर प्रभाव-
बग़दाद में जब “बुद्धिमत्ता का घर” (बैत अल हिकमा) का उद्घाटन हुआ था, तो यहां दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए लोगों का संपर्क इस्लामिक विद्वानों (मुसलमानों) से हुआ, मुसलमानों के साथ समय गुजारने से उन लोगों पर इस्लामिक संस्कृती का बहुत प्रभाव पड़ा और जब वे लोग अपने देश वापस जाते तो वे इस्लामिक संस्कृती से प्रभावित होते थे। इसके आलावा उस समय मुस्लिम व्यापारियों के द्वारा भी इस्लामी संस्कृती का फैलाव हुआ। (यहां यह जान लेना आवश्यक है कि संस्कृती का मतलब धर्म नहीं बल्कि संस्कृती का मतलब रहनसहन, खानपान, पहनावा, वेशभूषा, अदब-तहजीब आदि है)
इस्लामी स्वर्ण युग का शिक्षा पर प्रभाव –
सन 786 में इंदुलुसिया में स्थापित कॉर्डोबा विश्वविद्यालय, यूरोप का सबसे पुराना विश्वविद्यालय था जिसे मुसलमानों ने स्थापित किया था, कॉर्डोबा विश्वविद्यालय से ही फ्रेंच-अवरोही पोप सिल्वेस्टर द्वितीय (999-1003) ने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अल-क़रावियिन और ज़ायतौना के विश्वविद्यालयों की स्थापना क्रमशः 726 और 732 में ट्यूनीशिया में की गई थी और उनके बाद 972 में काहिरा(मिस्र) में अल-अजहर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी।
अल-क़रावियिन विश्वविद्यालय को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा दुनिया का सबसे पुराना और पहला आधुनिक विश्वविद्यालय माना जाता है, जिस की स्थापना 859 ईस्वी में मोरक्को में फातिमा अल-फ़िहरी द्वारा की गई थी, यह यूनिवर्सिटी अब भी चल रहा है। इसको दुनिया का सबसे पुराना और पहला आधुनिक विश्वविद्यालय इस लिए मना जाता है क्यों कि सबसे पहले यहां सेल्बस निर्धारित किया गया और शिक्षा पूरी होने के बाद यहां से डिग्री प्रदान किया जाता था। इस्लामिक स्वर्ण युग के दौरान यह विश्वविद्यालय आध्यात्मिक और शैक्षिक केंद्र बन गया।
इस्लामी स्वर्ण युग का चिकित्सा के क्षेत्र पर प्रभाव –
इस्लामी स्वर्ण युग में चिकित्सा के क्षेत्र में तीन ऐसे मुसलमान इब्न सीना, अल-ज़हरवी और इब्न ज़ुहर है जिनके काम ने आधुनिक चिकित्सा की नीव रखी।
इब्न सीना ने किताब ‘अल कानून फी अल तिब्ब'(القانون في الطب) लिखा। इस किताब में मानव शरीर कैसे बनाते हैं, तत्वों की परस्पर क्रिया, शरीर के तरल पदार्थ (हार्मोंस), मानव शरीर रचना, शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य और बीमारी के कारण, 800 चिकित्सा पदार्थों को सूचीबद्ध किया है जो उस समय उपयोग किए गए थे, इन पदार्थ का नाम उसकी प्रकृति और प्राथमिक गुण, शरीर के ऊपर से शरीर के नीचे तक प्रत्येक अंग के कार्य और रोग, लक्षण, निदान शामिल है। इब्न सीना की यह किताब कई मध्यकालीन विश्वविद्यालयों में एक चिकित्सा पाठपुस्तक के रूप में 19वीं सताब्दी के अंत तक उपयोग होता रहा।
इब्न ज़ुहर जो अपने युग के सबसे प्रसिद्ध चिकित्सक थे। उन्हें चिकित्सा को अधिक तर्कसंगत और अनुभवजन्य आधार पर जोर देने के लिए जाना जाता है। उन्होंने कई बीमारियों और उनके उपचारों का उल्लेख करके शल्य चिकित्सा और चिकित्सा विज्ञान में सुधार किया। इब्न ज़ुहर ने एक बकरी पर पहला प्रायोगिक ट्रेचोटॉमी ऑपरेशन किया। इब्न जुहर को ऑपरेशन का तरीका, ऑपरेशन के समय और बाद की सफाई पर किताब लिखा। इन्होंने पेट, अन्नप्रणाली और गर्भाशय में कैंसर की संरचनाओं की पहचान किया और इस बीमारी का नाम अकिला रखा, जिसका अर्थ है कि कुछ ऐसा है जो ‘खा जाता है’।
अल ज़हरावी एक अरब चिकित्सक , सर्जन और रसायनशास्त्री थे । उन्हें मध्य युग का सबसे बड़ा सर्जन माना जाता है। अल ज़हरावी को “आधुनिक सर्जरी का जनक” कहा जाता है। अल-ज़हरावी का प्रमुख कार्य किताब अल-तशरीफ़ है , जो चिकित्सा पद्धतियों का एक तीस-खंड का विश्वकोश है। इस किताब का लैटिन और हिब्रू में अनुवाद किया गया था, जो बहुत लोकप्रिय हुई और अगले पाँच सौ वर्षों के लिए यूरोप में मानक पाठ्यपुस्तक बन गई। सर्जिकल प्रक्रियाओं और उपकरणों के क्षेत्र में अल-ज़हरावी के अग्रणी योगदान का आधुनिक काल में पूर्व और पश्चिम में पूरी तरह से प्रभाव पड़ा, जहां उनकी कुछ खोजों को आज भी चिकित्सा में लागू किया जाता है। उन्होंने आंतरिक टांके के लिए कैटगट (जानवरों के अंत के बने धागे जो अपने आप कुछ समय बाद गलने लगता है) का उपयोग किया और उन्होंने शल्य चिकित्सा के लिए 200 से अधिक उपकरणों का अविष्कार किया जिनका आज भी उपयोग किया जाता है। अल जहरावी ने मेडिसिन, सर्जरी, हड्डी रोग, स्त्री रोग, औषध विज्ञान और दंत चिकित्सा में अपना उत्कृष्ट योगदान दिया।
इस्लामी स्वर्ण युग में विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति –
इस युग में पैदा हुए वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए कार्यों ने विज्ञान की दिशा और दशा दोनो को बदल कर रख दिया।
हसन इब्न अल-हेथम (Hasan Ibn al-Haytham) ने पता लगाया कि प्रकाश किरणें एक सीधी रेखा में यात्रा करती हैं और जब यह किसी वस्तु पर टकरा कर हमारी आंखों में जाती है, तो हम वस्तुओं को देख पाते हैं। इनके प्रयोगात्मक डेटा और इनके द्वारा की गई खोजों के कारण, इन्हें लोगों द्वारा दुनिया का पहला वैज्ञानिक माना जाता है।
जाबिर इब्न हय्यान ने रसायन विज्ञान में अपनी खोज की, उन्होंने सल्फ्यूरिक एसिड के साथ विभिन्न लवणों को आसवित करके नाइट्रिक एसिड और हाइड्रोक्लोरिक एसिड की खोज की। रसायन विज्ञान के क्षेत्र में जाबिर इब्न हय्यान के योगदान के कारण, उन्हें द फादर ऑफ केमिस्ट्री के रूप में जाना जाता है ।
अलबरूनी ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में कई खोज कीं जैसे कि दिशाओं को खोजना और सूर्य और चंद्रमा की चाल।
अल-जज़री को मैकेनिकल इंजीनियरिंग और रोबोटिक्स के क्षेत्र में काम करने के लिए जाना जाता है, जहां उन्होंने पहली बार एक ऑटोमेटिक गैजेट का आविष्कार किया था, जो हाइड्रो पावर द्वारा संचालित थे। इनका सबसे प्रमुख आविष्कार क्रैंक और कनेक्टिंग रॉड था, जिनका प्रयोग आज हर इंजन और गाड़ी में होता है।
उमर खय्याम ने एक सौर वर्ष का दशमलव के छह बिन्दुओं तक पता लगाया (इस खोज से यह पता लगा की एक साल में 365.242250 दिन होता है)। खय्याम ने इसी आधार पर एक नए कैलेंडर का आविष्कार किया जिसे जलाली कैलेंडर कहते हैं, यही कैलेंडर आगे चलकर आधुनिक कैलेंडर का आधार बना।
अब्बास इब्न फिर्नास ने 9 वीं सदी में राईट ब्रदर्स के पैदा होने से भी 1000 साल पहले ‘फ्लाइंग मशीन’ का मॉडल तैयार किया और सफलतापूर्वक हवा में उड़ान भरी।
पिरी रीस का बनाया नक्शा दुनिया का सबसे पुराना वह नक्शा है जो यूरोप के पश्चिमी तटों और उत्तरी अफ्रीका और ब्राजील के तट को उचित सटीकता के साथ दिखाता है। यह अमेरिका का सबसे पुराना नक्शा है। पुस्तक में यात्राओं का जो वर्णन है उसके आधार पर अनुमान है कि इसमें पूरे विश्व का नक्शा रहा होगा, लेकिन दुर्भाग्य से जब ये पुस्तक प्राप्त हुवा तब तक इसके कई पृष्ठ और नक्शे का 2/3 हिस्सा खराब हो चुका था।
इसके अलावा इस काल में साबुन, शैंपू, कॉफी, इत्र, तोप, कॉम्बिनेशन ताले, सर्जिकल यंत्र, एनेस्थेसिया, विंडमिल, काउपॉक्स का इलाज, फाउंटेन पेन, क्रिस्टल ग्लास, कारपेट, टूथब्रश, समुद्र यात्रियों का कंपास, सॉफ्ट ड्रिंक, पेंडुलम, कॉस्मेटिक्स, सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी, पेपर और कपड़े की मैन्युफैक्चरिंग आदि की खोज हुई।
इस्लामी स्वर्ण युग में गणित के क्षेत्र में हुआ विकाश –
इस काल में हुए गणितज्ञों ने गणित का 70% विकाश इसी काल में पूरा कर दिया था।
सन् 820 के आसपास ‘मुहम्मद अल ख्वारिज़्मी’ ने बगदाद में अपने एक ग्रंथ का नाम “अल-किताब अल-मुक्तसर फी हिसाब अलजब्र वा अल-मुकाबला” रखा। इस महत्वपूर्ण किताब के नाम पर ही यूरोप में इस विषय का नाम ऐलजेबरा (algebra) पड़ा। अल ख्वारिज़्मी के इस किताब को लिखने से पहले इस बात के प्रमाण हैं कि यूनानी, हिंदुस्तानी और बेबीलोन के गणितज्ञ अल-ख़्वारिज़मी से बहुत पहले बीज गणित के समीकरणों को हल कर रहे थे लेकिन अल ख्वारिज़्मी इतने प्रसिद्ध इसलिए हुए क्योंकि एक तो उनके बीज गणित आज उपयोग हो रहे बीज गणित के बहुत करीब है, और दूसरा उन्होंने इसे इतना आसान कर दिया था कि बहुत से लोग इसका उपयोग अपने दैनिक समस्याओं को हल करने में कर सकते थे। अल ख्वारिज़्मी ने अपनी किताब के पन्नों को, प्रतीकों और समीकरणों के साथ भरने के बजाय, उन्होंने बहुत ही आम भाषा में ये सब कुछ लिखा है, जो बात बीज गणित के प्रतीकों के माध्यम से दो पंक्तियों में बताई जा सकती थी, उसे अल ख्वारिज़्मी ने दो-पृष्ठों में स्पष्टीकरण के ज़रिये समझाया है।
फारसी गणितज्ञ उमर खय्याम ने बीजगणितीय ज्यामिति की नींव रखी और घन समीकरण का एक ज्यामितीय समाधान प्रस्तावित किया। एक अन्य फारसी गणितज्ञ, शराफ अल-दीन अल-तुसी ने विभिन्न क्षेत्रों में घन समीकरणों के संख्यात्मक और बीजगणितीय समाधान प्रस्तुत किया। उन्होंने फलन (function) की सनकल्पना का भी परिचय दिया।
इस्लामी स्वर्ण युग के विद्वानों द्वारा किए गए कार्यों के कारण आधुनिक युग की नींव पड़ी। लेकिन इन मुस्लिम विद्वानों ने जो योगदान दिया उसे एक बड़ी साजिश के तहत नज़र-अंदाज कर इनकी उपलब्धियों को दफन करने की कोशिश की गई। इस साजिश में मुस्लिम विद्वानों द्वारा की गई खोजों पर न सिर्फ पर्दा डाल दिया बल्कि इनकी पहचान को इनका नाम बदल कर छुपा दिया गया। इसलिए अब आप इस पोस्ट को शेयर करके इन मुस्लिम विद्वानों और वैज्ञानिको के बारे में अपने फ्रेंड्स और परिवार के लोगों को बताएं।