‘बैत-अल-हिक्मा’ को बगदाद के सबसे बड़ी लाइब्रेरी रूप में जाना जाता था, यह एक सार्वजनिक अकादमी और बौद्धिक केन्द्र था, जहां अन्य सभ्यताओं और संस्कृतियों के साहित्य का अध्ययन और अनुवाद अरबी और फारसी में होता था।
कैसे हुई बैत अल हिकमा की स्थापना?
‘बैत अल हिकमा’ (House of Wisdom)’ यानी ‘ज्ञान का घर’ की स्थापना 8वीं शताब्दी के अंत में अब्बासिद खलीफा हारुन अल-रशीद ने एक निजी पुस्तकालय के रूप में किया था। शुरुआत में यहां सिर्फ अनुवाद का काम होता था लेकिन बाद में अल-मामुन के शासनकाल के दौरान एक सार्वजनिक अकादमी में बदल गई। बैत अल-हिकमा (हाउस ऑफ विजडम) एक पुस्तकालय से कहीं अधिक था, और इससे संबंधित विद्वानों और बुद्धिजीवियों द्वारा काफी मात्रा में मूल वैज्ञानिक और दार्शनिक कार्य तैयार किए गए थे। इसीलिए ‘इस्लामि स्वर्ण युग’ की शुरुआत ‘बैत अल-हिकमा’ की स्थापना के साथ मना जाता है।
बैत अल-हिकमा में हुए कार्य और इसकी उपलब्धियां-
बैत अल हिकमा में इस्लामिक विद्वान, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले अलग अलग विषयों के विद्वानो को दुनिया के सभी ज्ञान को एकत्रित करने, उसका अनुवाद अरबी और फारसी में करने और उसका अध्ययन करने के लिए इकट्ठा किया गया था। इन विद्वानों ने प्राचीन युनान, भारत, चीन और फ़ारसी सभय्ताओं की साहित्य, दर्शनशास्र, विज्ञान, गणित इत्यादी से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन किया और उनका अरबी और फारसी में अनुवाद किया। इस कारण से मुस्लिम दुनिया बहुत जल्द विश्व का बौद्धिक केन्द्र और यह स्थान ज्ञान का उद्गम स्थल बन गया।
यहीं से गणित की क्रांतिकारी अवधारणाओं की उत्पत्ति हुई, जिसमें शून्य अंक और हमारे आधुनिक ‘अरबी’ अंक जैसी खोजें शामिल हैं। बैत अल हिकमा के मुख्य लाइब्रेरियन ‘मुहम्मद अल ख्वारिज़्मी’ ने पहली बार द्विघात समीकरणों को हल करने का एक व्यवस्थित तरीका बताया। ‘मुहम्मद अल ख्वारिज़्मी’ ने किताब “अल-किताब अल-मुक्तसर फी हिसाब अलजब्र वा अल-मुकाबला” लिखा जिसमे बीजगणित के समस्याओं को नए और आसान तरीके से हल करके बताया। अल-ख्वारिज्मी ने अपने शोध प्रबंध में दशमलव प्रणाली की शुरुआत किया। अल-ख्वारिज्मी की समस्याओं को हल करने पर लिखी गई इस किताब के नाम पर ही बीजगणित के एक भाग का नाम अलजेब्रा पड़ गया। अल ख्वारिज़्मी ने अपनी पुस्तक ‘किताब अल-जबर’ में एल्गोरिदम की संख्या को भी विकसित किया था। शब्द ‘एल्गोरिदम’ मुहम्मद अल ख्वारिज़्मी के लैटिन संस्करण के नाम ‘एल्गोरिदम’ को से लिया गया है।
अबू युसूफ याकूब इब्न इशाक अल-किंदी एक अन्य ऐतिहासिक व्यक्ति थे जिन्होंने बैत अल-हिकमा में काम किया। उन्होंने क्रिप्टोएनालिसिस का अध्ययन किया, लेकिन वे एक महान गणितज्ञ भी थे। अल-किंडी अरबी लोगों के लिए अरस्तू के दर्शन को पेश करने वाले पहले व्यक्ति होने के लिए सबसे प्रसिद्ध है।
अल-जाहिज़ उन कुछ मुस्लिम विद्वानों में से एक थे जो जीव विज्ञान से गहरा संबंध रखते थे। अल-जाहिज़ ने अपनी किताब ‘किताब-उल-हैवान’ में इस बात पर चर्चा करते है कि जानवर अपने परिवेश के अनुकूल कैसे होते हैं, अपनी पुस्तक में, अल-जाहिज़ ने तर्क दिया कि कुत्तों, लोमड़ियों और भेड़ियों जैसे जानवर एक सामान्य पूर्वज से निकले होंगे क्योंकि वे चार पैर, फर, पूंछ, और इसी तरह की विशेषताओं को साझा करते थे, जाहिज़ का विचार था कि भोजन, पर्यावरण और जगह ऐसे कारक हैं जो जानवरों को प्रभावित करते हैं और उन्हीं के प्रभाव से जानवरों की विशेषताएं बदल जाती है , जिससे जानवरों की एक नस्ल दूसरी नस्ल में बदल सकते है। अल-जाहिज़ इसके अलावा अस्तित्व और प्राकृतिक चयन के लिए संघर्ष का वर्णन भी करता है। इन बातो से साफ समझा जा सकता है की डार्विन इनसे प्रभावित थे।
मूसा इब्न शाकिर एक ज्योतिषी और खलीफा हारून अल-रशीद के बेटे अल-मामुन के दोस्त थे। मूसा इब्न शाकिर के तीन पुत्रों, जिन्हें सामूहिक रूप से बनी मूसा ( मूसा के पुत्र) के रूप में जाना जाता है , ने भी गणित और ज्योतिष के अपने व्यापक ज्ञान के साथ योगदान दिया। जब उनके पिता की मृत्यु हो गई, तो अल-मामून उनके अभिभावक बन गए। इन तीनों भाइयों अबू जाफ़र मुहम्मद इब्न मूसा इब्न शाकिर, अबू अली कासिम अहमद इब्न मूसा इब्न शाकिर और अल-हसन इब्न मूसा इब्न शाकिर को व्यापक रूप से अपनी सरल उपकरणों की पुस्तक के लिए जाना जाता है, जो लगभग एक सौ उपकरणों का वर्णन करता है और उनका उपयोग कैसे करें। इनमें से “द इंस्ट्रुमेंट दैट प्लेज बाय इट्सल्फ” एक प्रोग्राम करने योग्य मशीन का सबसे पहला उदाहरण था। मोहम्मद मूसा और उनके भाइयों अहमद और हसन ने हाउस ऑफ विजडम में रिसर्च के अलावा, अब्बासिद खलीफा अल-मामुन के मातहत बगदाद की खगोलीय वेधशालाओं में भी योगदान दिया। बाद में इन भाइयों को बगदाद में हाउस ऑफ विजडम के पुस्तकालय और अनुवाद केंद्र में नामांकित किया गया था। उन्होंने जल्दी से भाषा में महारत हासिल करने के बाद प्राचीन ग्रीक का अरबी में अनुवाद करना शुरू किया, साथ ही अनुवाद के लिए बीजान्टिन साम्राज्य से पांडुलिपियां प्राप्त करने के लिए बहुत बड़ी रकम का भुगतान किया। उन्होंने खगोल विज्ञान और भौतिकी में भी कई मौलिक योगदान दिए। मोहम्मद मूसा इतिहास के पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने भौतिकी के नियमों की सार्वभौमिकता की ओर इशारा किया।
10वीं शताब्दी में, इब्न अल-हेथम (अलहाज़ेन) ने कई भौतिक प्रयोग किए, मुख्य रूप से प्रकाशिकी और दृश्य धारणा के सिद्धांतों में, इनके महत्वपूर्ण उपलब्धियों को आज भी माना जाता है, इस लिए इन्हें ‘आधुनिक प्रकाशिकी का पिता’ कहा जाता है।
बैत-अल-हिक्मा के प्रधान अनुवादक हुनैन इब्न इसहाक ने नेत्र विज्ञान के क्षेत्र को समृद्ध किया। मानव आँख के अध्ययन में उनके योगदान का पता उनकी पुस्तक “बुक ऑफ़ द टेन ट्रीटीज़ ऑफ़ द आई” के माध्यम से लगाया जा सकता है । अन्य विद्वानों ने चेचक, संक्रमण और शल्य चिकित्सा पर भी लिखा। बाद में ये पुस्तकें यूरोपीय पुनर्जागरण के दौरान चिकित्सा की मानक पाठ्यपुस्तकें बन गईं।
अल-मामुन के नेतृत्व में पहली बार विद्वानों के बड़े समूहों को शामिल करते हुए व्यापक शोध परियोजनाओं को अंजाम दिया गया। टॉलेमी की टिप्पणियों की जांच करने के लिए, खलीफा ने बगदाद में पहली खगोलीय वेधशाला के निर्माण का आदेश दिया। टॉलेमी द्वारा प्रदान किए गए डेटा को भूगोलवेत्ताओं, गणितज्ञों और खगोलविदों के एक अत्यधिक सक्षम समूह द्वारा सावधानीपूर्वक जांचा और संशोधित किया गया था। अल-मामुन ने पृथ्वी की परिधि पर अनुसंधान का आयोजन किया और एक भौगोलिक परियोजना शुरू की जिसके परिणामस्वरूप उस समय के सबसे विस्तृत विश्व-मानचित्र को बनाया गया था।
कैसे हुआ बैत-अल-हिक्मा का विनाश?
सन् 1258 में हलाकु ख़ान के बगदाद की घेराबंदी के बाद, 13 फरवरी 1258 को, मंगोलों ने शहर में प्रवेश किया, जिससे पूरे सप्ताह लूट और विनाश शुरू हो गया।
बगदाद में अन्य सभी पुस्तकालयों के साथ, बगदाद की घेराबंदी के दौरान हलाकु की सेना द्वारा बैत-अल-हिक्मा को नष्ट कर दिया गया था। बगदाद के पुस्तकालयों की किताबें इतनी मात्रा में टाइग्रिस नदी में फेंक दी गईं कि किताबों की स्याही से नदी काली हो गई। कई पुस्तकों को इस लिए फाड़ दिया गया ताकि उनके चमड़े के आवरणों से सैंडल बनाया जा सके। नासिर अल-दीन अल-तुसी ने लगभग 4,00,000 किताबों को बचाया, जिन्हें वह घेराबंदी से पहले मराघेह ले गये थे ।