सौ बार अर्ज़ है कि हिफ़्ज़ भी किया जाएगा और अल्फाज़ भी पढ़े जायेंगे मगर ये कुरआन मजीद के नुज़ूल (नीचे आने) का मक़सद हरगिज़ नहीं।
कुरआन तो इसलिए नाज़िल किया गया था कि उस पर अमल किया जाए, उसमे बताए हलाल को हलाल और हराम को हराम समझा जाए और उसके अहकाम को पूरा किया जाए, नाजाएज़ उमूर से इज्तिनाब करें और समझते वक़्त उसके अजाइब पर रुक कर गौर करना, मगर लोगों ने उसके अल्फ़ाज़ पढ़ने को ही अमल बना लिया।
ये बात वाज़ेह तौर पर मालूम है कि हर कलाम का मक़सद उसके मतलब को समझना होता है न कि उसके सिर्फ अल्फ़ाज़ पढ़ना।
क्या ऐसा किसी दुनियावी क़िताब जैसे मेडिकल, साइंस, वकालत, इंजीनियरिंग आदि किताबों के साथ होता है कि सिर्फ़ उनके अल्फ़ाज़ पढ़ा जाता हो समझे बगैर, नहीं ना, क्योंकि सिर्फ उनके अल्फाज पढ़कर रट्टा मार कर कामयाबी नहीं मिल सकती। एक अच्छा डॉक्टर, एक अच्छा वकील और एक अच्छा इंजीनियर होने के लिए जरूरी है कि उन विषय की किताबों और उसमें लिखे बातों को पढ़ने के साथ-साथ अच्छी तरह समझा जाए और उस पर अमल भी करें, तभी कामयाबी मिल सकती है।
लेकिन कुरान के साथ ऐसा क्यूं नही, कुरान तो लोगों को हिदायत, निजात, स’आदतों तथा दुनिया और आखिरत दोनों में कामयाबी के लिए अल्लाह का कलाम है, कुरान सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं है बल्कि ये सारी इंसानियत के लिए है। इससे हर वो शख्स लाभ उठा सकता है जो हक को और सच को तलाश करने वाला हो। कुरान में हर समस्या का समाधान बताया गया है, बस उसे समझने की सलाहियत होनी चाहिए। कुरान में हर उस बात का जिक्र किया गया है, जो हमें सही है और इंसानियत के रास्ते पर चलना सिखाती है, फिर इसे बिना समझे सिर्फ पढ़कर कामयाबी पाने की उम्मीद कैसे किया जा सकता है।
क्या इन लोगों ने क़ुरआन पर ग़ौर नहीं किया, या दिलों पर उनके ताले लगे हुए हैं?
(क़ुरान – 47:24)
इसलिए कुरान को पढ़ने के साथ-साथ उसे समझने की कोशिश भी करते रहना चाहिए। अगर आप अरबी नही समझ सकते हैं तो कुछ कुछ अल्फाज का मतलब जानने की कोशिश करते रहें, इंशाल्लाह कुछ साल में आप अरबी के हर अल्फाज का मतलब जान जाएंगे, और आप अरबी को फर्राटेदार तरीके से पढ़, समझ और काफी हद तक बोल भी पाएंगे।
अगर ये सब नहीं कर सकते तो आज लगभग दुनिया के हर भाषा में कुरान शरीफ का तर्जुमा मिलजाएगा, उसे पढ़ें और समझें ताकि दुनिया और आखिरत दोनों में कामयाबी के लिए अल्लाह के कलाम को समझा जा सके और उस पर अमल किया जा सके।