तसद्दुक़ अहमद ख़ान शेरवानी ( tasadduq ahmad khan sherwani ) सन् 1885 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के क़रीब बिलोना गांव में पैदा हुए। अपने शुरुआती पढ़ाई के बाद मोहमडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज (अलीगढ़) में एडमिशन लिया।
वह एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिसने समाज में फैली सामाजिक असमानताओं और अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ भी लड़ाई लड़ी। मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्टूडेंट यूनियन का नेतृत्व संभालने के दौरान, वह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की तरफ़ आकर्षित हुए और कॉलेज प्रबंधन के अंग्रेज़ समर्थक रुख़ का विरोध किया, जिसके नतीजे में उन्हें कॉलेज से बेदखल कर दिया गया। उसके बाद तसद्दुक़ अहमद खान लॉ की पढ़ाई के लिए लंदन चले गये।
जहां से सन् 1912 में वापस आकर अलीगढ़ में ही वकालत शुरू की और कांग्रेस के प्रोग्रामों में शामिल होने लगे। सन् 1919 तक तसद्दुक़ अहमद कांग्रेस के अहम नेताओं में आपका शुमार होने लगे। आप पहली बार खिलाफ़त मूवमेंट में जेल गये और सन् 1921 में सिविल अवज्ञा आंदोलन के दौरान भी जेल गए।
दिसंबर 1920 में होने वाली कांग्रेस की बैठक में आप ने ऑल इंडिया मुस्लिम लीग को अहिंसा और असहयोग आंदोलनों का समर्थन करने पर तैयार किया। मुस्लिम लीग और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच मेल-मिलाप लाने के लिए उन्होंने अपनी ओर से हर संभव प्रयास किया।
तसद्दुक़ अहमद खान अपने भाषणों में हमेशा राष्ट्रीय एकता पर जोर देते थे। आपका मानना था कि अंग्रेजों से आजादी मिलजुलकर लड़ने से ही मिल सकती है।
22 मार्च 1935 को उनका निधन हो गया, उस समय तक आप 5 बार जेल जा चुके थे। किंतु अंग्रेज़ आप के विचारों और आत्मा को कभी बेड़ियां नहीं पहना सके।
आज 22 मार्च को स्वतंत्रता सेनानी तसद्दुक अहमदखान शेरवानी का यौमे वफात है, अल्लाह तआला उनको जन्नत में आला मुकाम अता करे।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक गुमनाम नायक: तसद्दुक़ अहमद खान शेरवानी (1885-1935)
मैं आफताब अहमद इस साइट पर एक लेखक हूं, मुझे विभिन्न शैलियों और विषयों पर लिखना पसंद है। मुझे ऐसा निबंध और ब्लॉग लिखना अच्छा लगता है जो मेरे पाठकों को चिंतन और प्रेरणा देती हैं।
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